एक अरसे बाद
धूप खिली थी
चेहरे पर !
धुधली यादें थी
अब तक
पहरे पर !
वो एक उलझन है !
मम्मी के
उन के धागे
सी उलझी हुई !
वो अल्हड़
हवा में झूमते
पीपल के
पीले पत्ते सी !
वो मीठी है
मुह में
शक्कर की
डली सी !
वो
गहरी है
समन्दर कि सी !
वो जेठ की
दोपहर मे
ठंडी हवा
कि सी !
वो अँधेरे में
दिये सी !
वो बच्चे के
चेहरे कि हसी सी !
वो अकेलेपन में
कांधे सी !
वो
बिलकुल पगली
पगली सी !